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The article lacks it. if there is indeed a meaning. Etymology section can be added-- DBig Xray 12:46, 10 July 2018 (UTC)
एक मुस्लिम भाईचारे को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं वह एक बार इतिहास भी देख ले कि किस प्रकार सिख गुरुओं का स्नेहा मुस्लिमों के प्रति है गुरु नानक देव जी के साथी भाई मरदाना जी एक मुस्लिम परिवार से थे श्री हरमंदिर साहिब से नीव एक मुस्लिम संत साईं मियां मीर जी ने रखी थी 1704 ई में जब गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज के दोनों छोटे साहिबजादे जोरावर सिंह और फ़तेह सिंह को सरहिंद के सूबेदार वज़ीर खां की कचहरी में जब जिन्दा दिवार में चुनकर सजा ए मौत का फरमान सुनाया तो उस कचहरी में मलेर कोटला नवाब शेर मुहम्मद खां भी मौजूद थे। उन्होंने इस पाप के खिलाफ आवाज़ उठाई और सूबेदार के इस फैसले का डट कर विरोध किया। नवाब साहब को याद दिलाया गया कि कैसे सिक्खों के साथ जंग में उनका सगा भाई मारा गया । नवाब साहब ने कहा कि जंग दो सेनाओं में होती है। जब सैनिक आमने सामने होते हैं तो दोनों तरफ से लोग मरते हैं, उसमे इन मासूम बच्चों का क्या कसूर। हां, मैं जंग का बदला जंग में लूंगा, इन नन्हें बच्चों को मार कर नही। ये इस्लाम के खिलाफ है। फिर भी सूबेदार सरहिंद वज़ीर खां नही माना। उसने गुरु गोबिंद सिंह के दोनों पुत्रों की सजा बरकरार रखी। यह देख सुन कर नवाब साहब " हा दा नारा" यानी हक़ की आवाज़ बोल कर वहां से बाहर चले गए। ये हा दा नारा सिख कौम के लिए एक अमर नारा बन गया नवाब जी की याद में आज भी मलेर कोटला नवाब शेर मुहम्मद खान की यादगार और हा के नारे को अमर बनाने के लिए सिख क़ौम ने शहीदी स्थान गुरुद्वारा फतेहगढ़ साहिब का मुख्य द्वार शेर मुहम्मद खान के नाम पर है जो सिख मुस्लिम भाईचारे की अद्भुत मिसाल है। महाराजा रंजीत सिंह की सेना में कई योद्धा मुस्लिम थे बताया जाता है कि जब 1984 में सिख विरोधी दंगे हुए थे उस समय हरियाणा हिमाचल प्रदेश के जिन इलाकों में मुस्लिम जनसंख्या अधिक थी इलाकों में मुस्लिम भाइयों ने सिखों को दंगाइयों की भीड़ से बचाया था सिख मुस्लिम भाईचारा जिंदाबाद Guru Prit Singh Garewal ( talk) 12:46, 23 December 2021 (UTC)
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एक मुस्लिम भाईचारे को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं वह एक बार इतिहास भी देख ले कि किस प्रकार सिख गुरुओं का स्नेहा मुस्लिमों के प्रति है गुरु नानक देव जी के साथी भाई मरदाना जी एक मुस्लिम परिवार से थे श्री हरमंदिर साहिब से नीव एक मुस्लिम संत साईं मियां मीर जी ने रखी थी 1704 ई में जब गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज के दोनों छोटे साहिबजादे जोरावर सिंह और फ़तेह सिंह को सरहिंद के सूबेदार वज़ीर खां की कचहरी में जब जिन्दा दिवार में चुनकर सजा ए मौत का फरमान सुनाया तो उस कचहरी में मलेर कोटला नवाब शेर मुहम्मद खां भी मौजूद थे। उन्होंने इस पाप के खिलाफ आवाज़ उठाई और सूबेदार के इस फैसले का डट कर विरोध किया। नवाब साहब को याद दिलाया गया कि कैसे सिक्खों के साथ जंग में उनका सगा भाई मारा गया । नवाब साहब ने कहा कि जंग दो सेनाओं में होती है। जब सैनिक आमने सामने होते हैं तो दोनों तरफ से लोग मरते हैं, उसमे इन मासूम बच्चों का क्या कसूर। हां, मैं जंग का बदला जंग में लूंगा, इन नन्हें बच्चों को मार कर नही। ये इस्लाम के खिलाफ है। फिर भी सूबेदार सरहिंद वज़ीर खां नही माना। उसने गुरु गोबिंद सिंह के दोनों पुत्रों की सजा बरकरार रखी। यह देख सुन कर नवाब साहब " हा दा नारा" यानी हक़ की आवाज़ बोल कर वहां से बाहर चले गए। ये हा दा नारा सिख कौम के लिए एक अमर नारा बन गया नवाब जी की याद में आज भी मलेर कोटला नवाब शेर मुहम्मद खान की यादगार और हा के नारे को अमर बनाने के लिए सिख क़ौम ने शहीदी स्थान गुरुद्वारा फतेहगढ़ साहिब का मुख्य द्वार शेर मुहम्मद खान के नाम पर है जो सिख मुस्लिम भाईचारे की अद्भुत मिसाल है। महाराजा रंजीत सिंह की सेना में कई योद्धा मुस्लिम थे बताया जाता है कि जब 1984 में सिख विरोधी दंगे हुए थे उस समय हरियाणा हिमाचल प्रदेश के जिन इलाकों में मुस्लिम जनसंख्या अधिक थी इलाकों में मुस्लिम भाइयों ने सिखों को दंगाइयों की भीड़ से बचाया था सिख मुस्लिम भाईचारा जिंदाबाद Guru Prit Singh Garewal ( talk) 12:46, 23 December 2021 (UTC)