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सांभर राज्य के राजा जै सिंह देव के तीन पुत्र सोमेश्वर देव कान्ह राय और जयत गोपाल (हुए) सोमेश्वर देव के पुत्र पृथ्वी राज चैहान (राय पिथौरा), कान्ह राय के ईश्वर देव और जयत गोपाल के गमले देव चैहान हुए सोमेश्वर देव के वंशज लाखन सिंह के पुत्र रूद्र प्रताप से मैनपुरी शाखा और गमले देव से गमले या गमेल शाखा का उदय हुआ। गमले देव चैहान पृथ्वी राज चैहान के साथ दिल्ली के राजा अनंग पालतोमर के बागी राजा मदन पाल तोमर से युद्ध लड़ने दिल्ली आये और दिल्ली में राजपूताना गली आबाद की। उनके वंशजों ने राजपूत धर्म शाला का निमार्ण किया।
पृथ्वी राज चैहान और मोहम्मद गोरी के पानीपत युद्ध के पश्चात चैहानों के 120 वर्ष के राज्य का अन्त होकर दिल्ली में मोहम्मद गोरी के गुलाम सैनिक कुतुब्बुद्दीन ऐबक का कब्जा हो गया। दिल्ली में मुगल अधिपत्य हो जाने पर तमाम चैहान सरदार दिल्ली छोड़ अनेक जगहों पर जा बसे किन्तु गमले देव चैहान के वंशज सरदार देवदत्त सिंह अपने साथी सरदारों के साथ मुगल बादशाह-मुहम्मद तुगलक की अलम्बरदारी में नौकरी कर ली। सन् 1365 ई0 में शाही हुक्म से दोआबे की भूमि बहुराजमऊ के पास जिस पर कब्जा करने के लिए-राजा बैसवाड़ा, नाना राव पेशवा और लखनऊ के नवाबों की सेनायें प्रयासरत थी किंतु नवाबी सेना के हारने के बाद दिल्ली के शाही हुक्म से सरदार देवदत्त सिंह अपने साथी सरदार गब्बर सिंह गिंधूरा, कुशहर सिंह, करम सिंह, कुलीटे सिंह,सरदार वादे सिंह, शंकर सिंह,महादीन सिंह, भागमल, श्रीकृश्ण दास, फतेह सिंह, लाल सिंह, अल्हाद सिंह आदि के साथ सेना लेकर दोआबे की भूमि पर कब्जा करने हेतु उन्नाव के बिछिया में बसहा के किनारे-पड़ाव डाला जिसमें सरदार गोरे सिंह व उनके छोटे भाई गोदे सिंह अपनी सेना से अलग होकर राजा तिलोक चन्द, बैस की नौकरी निजी अंग रक्षकों में कर ली।
सरदार देवदत्त सिंह ने अपनी सेना के साथ राजा बैसवाड़ा और नानाराव पेशवा के युद्ध का मोर्चा संभाला। भयानक युद्ध और मारकाट हुई। रक्तपात देखकर लखनऊ के नवाबों ने शाही हुक्म से सरदार देवदत्त सिंह व उनके साथी सरदारों को सई नदी के किनारे जसमड़ा बब्बन और आसीवन के मध्य जागीरे देकर आबाद किया और कहा कि दिखितियाना के दिखित लोग लखनऊ की ओर कब्जा करने हेतु सई नदी पार न कर पायें। इसी कारण दिखित सरदारों व गमले चैहानों के आये दिन युद्ध होते रहते थे। इनके मध्य आखिरी युद्ध सन् 1855 में बरौना गांव में हुआ जिसमें 18 दिखित मारे गये।
सरदार देवदत्त सिंह ने अपने साथी सरदारों के जागीरें दिला देने के बाद सर्व प्रथम सरदार कशहर सिंह और अपने कायस्थ दीवान पहलवान सिंह को सई नदी के किनारे राजा बैराट के नाम पर बैराट नगर बसाकर आबाद किया बाद में मुस्लिम शासकों द्वारा उसका नाम बदल कर आदमपुर बरेठी कर दिया गया।
सरदार देवदत्त सिंह ने दो हजार बीघा जमीन पाकर मौला बाकीपुर आबाद किया। सरदार गम्बर सिंह गिंधूरा ने आसीवन की जंगलजी भूमि में गिंधूरा गांव आबाद किया जिसमें बाद में हैदर खाँ ने मुस्लिम बस्ती बसाकर उसका नाम हैदराबाद रखा। गिंधूरा हैदराबाद का एक मुहल्ला बनकर रह गया। घोड़ों के प्रबन्धक सरदार करम चन्द और कलूटे सिंह ने (हय-सेवा) हंसेवा और गयना की बस्तियां बसायी। गयना पाँच गावों तक फैलकर पचगहना कहलाया। सरदार शंकर सिंह ने शंकरपुर, महादीन सिंह ने महादीनपुर गांव आबाद किया जो कालान्तर में मोहद्दीपुर कहलाया। यहीं से निकलकर चैहान राजपूत शेखूपुर में आबाद हुए। सरदार श्रीकृश्ण दास ने लखनऊ के हाकिम शेखजादे की आज्ञा से सई नदी के किनारे जंगल में शेखपुर बुजुर्ग गाव आबाद किया। सरदार भागमल चैहान ने परगना बिजनौर जिला लखनऊ में सई नदी के-किनारे नानमऊ गांव आबाद किया। डा0 लाल सिंह ने हाकिम लखनऊ की नौकरी करके कूड़ा समुद्र के किनारे लालपुर गांव आबाद किया और सरदार अल्हाद सिंह ने अल्हाद सिंह पुरवा गांव आबाद किया। जौनपुर सरकार के हाकिम मलिक आदम खाँ के वंशज अल्ला दाद खाँ ने इस गांव पर कब्जा करके इस बस्ती का नाम अल्ला दादपुर खेरवा रखा और अमांवा के कुछ मुसलमानों को भी आबाद कर दिया। कालान्तर में यह खेरवा अलादादपुर कहलाया।
अकबरी काल में इस क्षेत्र के हाकिम लखनऊ के शेखजादे हुए तो उन्होने मलिक आदम खाँ के वंशजों को माजूल करके चैहान राजपूत डा0 भीखा सिंह और गंगादीन सिंह को पुनः यहाँ का जागीरदार बनाया।
बजेहरा व नया खेड़ा में परेंदा के राजा पन्ना मल दिखित ने सिपाहियाना सहायता पाने के लिए चैहान राजपूतों को आबाद कर जागीरदार बनाया।
तियर इलाके में बाबा खेड़ा सुभानी खेड़ा,कान्ह खेड़ा मुरव्वतपुर आसीवन महमूदपर, पारा सैफपुर कनिगांव मल्ही मऊ बिनैका आदि तथा गंगादासपुर गढै़या,अरझ्वारा मऊ आदि आबाद हुए।
जिला उन्नाव, तहसील हसनगंज के हसनगंज औरास, मियाँगंज तथा सिकन्दरपुर सरोसी में लगभग एक सौ चवालीस गांव आबाद हैं। एक चैहान सरदार को शाहजहाॅपुर में जागीर मिली जहाँ 27 गाँवों का तालुका आज भी आबाद है इस तरह लखनऊ,उन्नाव,हरदोई, दिल्ली, शाहजहाँपुर आदि जिलों में गमलेदेव चैहान के वंशज (गमेल चैहान) बहुतायत संख्या में आबाद है।
कुछ समय बाद राजा बैसवाड़ा ने लखनऊ पर चढ़ाई की और शाही सेना को हराकर आधा लखनऊ जीत लिया। गोमती नदी के किनारे रूमी दरवाजे के पास से नबाबों से सुलह करके कोयले से लकीरें बनाई जाने लगी जिससे राजा बैसवाड़ा और नवाबों के राज्य का निर्धारण हो सके। राजा बैसवाड़ा की सेना गाफिल हो गई। उसी समय मलिहाबादी पठानों की पल्टन ने बैस सेना पर हमला कर दिया बैस सेना भाग खड़ी हुई। राजा बैसवाड़ा के प्रमुख अंगरक्षक गोसे सिंह चैहान के नेतृत्व में उनके छोटे भाई गोदे सिंह और कुछ अन्य सैनिकों ने मिलकर रथों और बैलगाड़ियों की बाड़ लगाकर पठानी सेना को रोक कर राजा बैसवाड़ा की जान बचाकर उनकी पालकी को लखनऊ के बाहर ले आये जहाँ एक घोड़े का इन्तजाम कर राजा बैसवाड़ा सिसेंडी आये जहाँ आम की बाग में एक ब्राह्मण बालक से मांग कर पानी पिया। उस बालक को राजा बैसवाड़ा ने आमतारा पाठक की उपाधि और सिसेंडी का तालुका दिया। डौड़िया खेड़ा पहुँच कर उन्होनें बैस सेना की लानत मलामत की और सरदार गोसे सिंह को घूरखेत की जागीर देकर पीठ ठोंकी और महरौर राजपूत घोशित किया। गोसे सिंह चैहान ने जागीर पाकर अपने छोटे भाई गोदे सिंह से विमुख हो उन्हे घूरखेत से बेदखल कर दिया जो लखनऊ में सई नदी के किनारे आकर गोंदौली गांव आबाद किया।
"सरदार गोसे सिंह गमले चैहान से महरौड़ हो गये। उनके वंशज अब अपने को बघेल कहने लगे हैं।
महरौड़ क्षत्रिय भी चैहानों की शाखा है जो मिहिर राजधानी में निवास करने के कारण महरौड़ कहलाये।"
डा0 भानु प्रताप सिंह चैहान
प्रदेश उपाध्यक्ष,
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पृथ्वी राज चैहान और मोहम्मद गोरी के पानीपत युद्ध के पश्चात चैहानों के 120 वर्ष के राज्य का अन्त होकर दिल्ली में मोहम्मद गोरी के गुलाम सैनिक कुतुब्बुद्दीन ऐबक का कब्जा हो गया। दिल्ली में मुगल अधिपत्य हो जाने पर तमाम चैहान सरदार दिल्ली छोड़ अनेक जगहों पर जा बसे किन्तु गमले देव चैहान के वंशज सरदार देवदत्त सिंह अपने साथी सरदारों के साथ मुगल बादशाह-मुहम्मद तुगलक की अलम्बरदारी में नौकरी कर ली। सन् 1365 ई0 में शाही हुक्म से दोआबे की भूमि बहुराजमऊ के पास जिस पर कब्जा करने के लिए-राजा बैसवाड़ा, नाना राव पेशवा और लखनऊ के नवाबों की सेनायें प्रयासरत थी किंतु नवाबी सेना के हारने के बाद दिल्ली के शाही हुक्म से सरदार देवदत्त सिंह अपने साथी सरदार गब्बर सिंह गिंधूरा, कुशहर सिंह, करम सिंह, कुलीटे सिंह,सरदार वादे सिंह, शंकर सिंह,महादीन सिंह, भागमल, श्रीकृश्ण दास, फतेह सिंह, लाल सिंह, अल्हाद सिंह आदि के साथ सेना लेकर दोआबे की भूमि पर कब्जा करने हेतु उन्नाव के बिछिया में बसहा के किनारे-पड़ाव डाला जिसमें सरदार गोरे सिंह व उनके छोटे भाई गोदे सिंह अपनी सेना से अलग होकर राजा तिलोक चन्द, बैस की नौकरी निजी अंग रक्षकों में कर ली।
सरदार देवदत्त सिंह ने अपनी सेना के साथ राजा बैसवाड़ा और नानाराव पेशवा के युद्ध का मोर्चा संभाला। भयानक युद्ध और मारकाट हुई। रक्तपात देखकर लखनऊ के नवाबों ने शाही हुक्म से सरदार देवदत्त सिंह व उनके साथी सरदारों को सई नदी के किनारे जसमड़ा बब्बन और आसीवन के मध्य जागीरे देकर आबाद किया और कहा कि दिखितियाना के दिखित लोग लखनऊ की ओर कब्जा करने हेतु सई नदी पार न कर पायें। इसी कारण दिखित सरदारों व गमले चैहानों के आये दिन युद्ध होते रहते थे। इनके मध्य आखिरी युद्ध सन् 1855 में बरौना गांव में हुआ जिसमें 18 दिखित मारे गये।
सरदार देवदत्त सिंह ने अपने साथी सरदारों के जागीरें दिला देने के बाद सर्व प्रथम सरदार कशहर सिंह और अपने कायस्थ दीवान पहलवान सिंह को सई नदी के किनारे राजा बैराट के नाम पर बैराट नगर बसाकर आबाद किया बाद में मुस्लिम शासकों द्वारा उसका नाम बदल कर आदमपुर बरेठी कर दिया गया।
सरदार देवदत्त सिंह ने दो हजार बीघा जमीन पाकर मौला बाकीपुर आबाद किया। सरदार गम्बर सिंह गिंधूरा ने आसीवन की जंगलजी भूमि में गिंधूरा गांव आबाद किया जिसमें बाद में हैदर खाँ ने मुस्लिम बस्ती बसाकर उसका नाम हैदराबाद रखा। गिंधूरा हैदराबाद का एक मुहल्ला बनकर रह गया। घोड़ों के प्रबन्धक सरदार करम चन्द और कलूटे सिंह ने (हय-सेवा) हंसेवा और गयना की बस्तियां बसायी। गयना पाँच गावों तक फैलकर पचगहना कहलाया। सरदार शंकर सिंह ने शंकरपुर, महादीन सिंह ने महादीनपुर गांव आबाद किया जो कालान्तर में मोहद्दीपुर कहलाया। यहीं से निकलकर चैहान राजपूत शेखूपुर में आबाद हुए। सरदार श्रीकृश्ण दास ने लखनऊ के हाकिम शेखजादे की आज्ञा से सई नदी के किनारे जंगल में शेखपुर बुजुर्ग गाव आबाद किया। सरदार भागमल चैहान ने परगना बिजनौर जिला लखनऊ में सई नदी के-किनारे नानमऊ गांव आबाद किया। डा0 लाल सिंह ने हाकिम लखनऊ की नौकरी करके कूड़ा समुद्र के किनारे लालपुर गांव आबाद किया और सरदार अल्हाद सिंह ने अल्हाद सिंह पुरवा गांव आबाद किया। जौनपुर सरकार के हाकिम मलिक आदम खाँ के वंशज अल्ला दाद खाँ ने इस गांव पर कब्जा करके इस बस्ती का नाम अल्ला दादपुर खेरवा रखा और अमांवा के कुछ मुसलमानों को भी आबाद कर दिया। कालान्तर में यह खेरवा अलादादपुर कहलाया।
अकबरी काल में इस क्षेत्र के हाकिम लखनऊ के शेखजादे हुए तो उन्होने मलिक आदम खाँ के वंशजों को माजूल करके चैहान राजपूत डा0 भीखा सिंह और गंगादीन सिंह को पुनः यहाँ का जागीरदार बनाया।
बजेहरा व नया खेड़ा में परेंदा के राजा पन्ना मल दिखित ने सिपाहियाना सहायता पाने के लिए चैहान राजपूतों को आबाद कर जागीरदार बनाया।
तियर इलाके में बाबा खेड़ा सुभानी खेड़ा,कान्ह खेड़ा मुरव्वतपुर आसीवन महमूदपर, पारा सैफपुर कनिगांव मल्ही मऊ बिनैका आदि तथा गंगादासपुर गढै़या,अरझ्वारा मऊ आदि आबाद हुए।
जिला उन्नाव, तहसील हसनगंज के हसनगंज औरास, मियाँगंज तथा सिकन्दरपुर सरोसी में लगभग एक सौ चवालीस गांव आबाद हैं। एक चैहान सरदार को शाहजहाॅपुर में जागीर मिली जहाँ 27 गाँवों का तालुका आज भी आबाद है इस तरह लखनऊ,उन्नाव,हरदोई, दिल्ली, शाहजहाँपुर आदि जिलों में गमलेदेव चैहान के वंशज (गमेल चैहान) बहुतायत संख्या में आबाद है।
कुछ समय बाद राजा बैसवाड़ा ने लखनऊ पर चढ़ाई की और शाही सेना को हराकर आधा लखनऊ जीत लिया। गोमती नदी के किनारे रूमी दरवाजे के पास से नबाबों से सुलह करके कोयले से लकीरें बनाई जाने लगी जिससे राजा बैसवाड़ा और नवाबों के राज्य का निर्धारण हो सके। राजा बैसवाड़ा की सेना गाफिल हो गई। उसी समय मलिहाबादी पठानों की पल्टन ने बैस सेना पर हमला कर दिया बैस सेना भाग खड़ी हुई। राजा बैसवाड़ा के प्रमुख अंगरक्षक गोसे सिंह चैहान के नेतृत्व में उनके छोटे भाई गोदे सिंह और कुछ अन्य सैनिकों ने मिलकर रथों और बैलगाड़ियों की बाड़ लगाकर पठानी सेना को रोक कर राजा बैसवाड़ा की जान बचाकर उनकी पालकी को लखनऊ के बाहर ले आये जहाँ एक घोड़े का इन्तजाम कर राजा बैसवाड़ा सिसेंडी आये जहाँ आम की बाग में एक ब्राह्मण बालक से मांग कर पानी पिया। उस बालक को राजा बैसवाड़ा ने आमतारा पाठक की उपाधि और सिसेंडी का तालुका दिया। डौड़िया खेड़ा पहुँच कर उन्होनें बैस सेना की लानत मलामत की और सरदार गोसे सिंह को घूरखेत की जागीर देकर पीठ ठोंकी और महरौर राजपूत घोशित किया। गोसे सिंह चैहान ने जागीर पाकर अपने छोटे भाई गोदे सिंह से विमुख हो उन्हे घूरखेत से बेदखल कर दिया जो लखनऊ में सई नदी के किनारे आकर गोंदौली गांव आबाद किया।
"सरदार गोसे सिंह गमले चैहान से महरौड़ हो गये। उनके वंशज अब अपने को बघेल कहने लगे हैं।
महरौड़ क्षत्रिय भी चैहानों की शाखा है जो मिहिर राजधानी में निवास करने के कारण महरौड़ कहलाये।"
डा0 भानु प्रताप सिंह चैहान
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